बुतों की चाह में हम तो अज़ाब ही में रहे By Sher << गरचे तर्क-ए-आश्नाई को ज़म... चली भी जा जरस-ए-ग़ुंचा की... >> बुतों की चाह में हम तो अज़ाब ही में रहे शब-ए-फ़िराक़ कटी रोज़-ए-इंतिज़ार आया Share on: