चारागर ने बहर-ए-तस्कीं रख दिया है दिल पे हाथ By Sher << इस इंतिहा-ए-क़ुर्ब ने धुँ... अक़्ल हर बार दिखाती थी जल... >> चारागर ने बहर-ए-तस्कीं रख दिया है दिल पे हाथ मेहरबाँ है वो मगर ना-आश्ना-ए-ज़ख़्म है Share on: