चेहरे की चाँदनी पे न इतना भी मान कर By Sher << इस शहर-ए-फ़ुसूँ-गर के अज़... और रब्त जिसे कुफ़्र से है... >> चेहरे की चाँदनी पे न इतना भी मान कर वक़्त-ए-सहर तू रंग कभी चाँद का भी देख Share on: