छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर By Sher << मैं उस की अंखों में ऐसे ड... बने हैं कितने चेहरे चाँद ... >> छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं Share on: