चुप रह के गुफ़्तुगू ही से पड़ता है तफ़रक़े By Sher << दाग़ उस पे कहाँ थे ये गली... छान डाला तमाम काबा-ओ-दैर >> चुप रह के गुफ़्तुगू ही से पड़ता है तफ़रक़े होते हैं दोनो होंट जुदा इक सदा के साथ Share on: