क़फ़स में जी नहीं लगता है आह फिर भी मिरा By Sher << क़त्ल और मुझ से सख़्त-जाँ... फूट निकला ज़हर सारे जिस्म... >> क़फ़स में जी नहीं लगता है आह फिर भी मिरा ये जानता हूँ कि तिनका भी आशियाँ में नहीं Share on: