क्यूँ न अफ़ई चले हर एक जगह मकड़ा कर By Sher << जम्हूरियत के बीच फँसी अक़... मोहब्बत और मजनूँ हम तो सौ... >> क्यूँ न अफ़ई चले हर एक जगह मकड़ा कर न पड़ा उस को तिरी ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम से काम Share on: