जम्हूरियत के बीच फँसी अक़्लियत था दिल By Sher << जाँ-सिपारी दाग़ कत्था चून... क्यूँ न अफ़ई चले हर एक जग... >> जम्हूरियत के बीच फँसी अक़्लियत था दिल मौक़ा जिसे जिधर से मिला वार कर दिया Share on: