दामन-ए-सब्र के हर तार से उठता है धुआँ By Sher << ग़म-ए-फ़िराक़ को सीने से ... तुम को आना है तो आ जाओ इस... >> दामन-ए-सब्र के हर तार से उठता है धुआँ और हर ज़ख़्म पे हंगामा उठा आज भी है Share on: