दिलों पे छाई है गर्द-ए-कुदूरत By Sher << बुत-ख़ाने की उल्फ़त है न ... ग़लत बातों को ख़ामोशी से ... >> दिलों पे छाई है गर्द-ए-कुदूरत मुसफ़्फ़ा अब ये आईने नहीं हैं Share on: