दिन निकलते ही वो ख़्वाबों के जज़ीरे क्या हुए By Sher << मैं हो के तिरे ग़म से नाश... तू है हरजाई तो अपना भी यह... >> दिन निकलते ही वो ख़्वाबों के जज़ीरे क्या हुए सुब्ह का सूरज मिरी आँखें चुरा कर ले गया Share on: