दीवार-ए-ज़िंदाँ के पीछे By Sher << इंसान बे-हिसी से है पत्थर... इन शोख़ हसीनों की निराली ... >> दीवार-ए-ज़िंदाँ के पीछे जुर्म-ए-मोहब्बत में बैठा हूँ Share on: