दो चार दिन से मेरी समाअत ब्लाक थी By Sher << मस्लहत का यही तक़ाज़ा है जो सुनता हूँ सुनता हूँ मै... >> दो चार दिन से मेरी समाअत ब्लाक थी तुम ने ग़ज़ल पढ़ी तो मिरा कान खुल गया Share on: