मस्लहत का यही तक़ाज़ा है By Sher << जी चाहता है साने-ए-क़ुदरत... दो चार दिन से मेरी समाअत ... >> मस्लहत का यही तक़ाज़ा है वो न मानें तो मान जाओ तुम Share on: