डोरे नहीं हैं सुर्ख़ तिरी चश्म-ए-मस्त में By Sher << यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा द... याद भी आता नहीं कुछ भूलता... >> डोरे नहीं हैं सुर्ख़ तिरी चश्म-ए-मस्त में शायद चढ़ा है ख़ून किसी बे-गुनाह का Share on: