यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा दी ज़बान पर By Sher << लाख सादा सही तेरी ये जबीं... डोरे नहीं हैं सुर्ख़ तिरी... >> यूँ बाग़बाँ ने मोहर लगा दी ज़बान पर रूदाद-ए-ग़म नसीब के मारे न कह सके Share on: