डूबे हुए तारों पे मैं क्या अश्क बहाता By Sher << ज़िंदगी के आख़िरी लम्हे ख... फ़ज़ा-ए-शहर बड़ी ख़ुश-गवा... >> डूबे हुए तारों पे मैं क्या अश्क बहाता चढ़ते हुए सूरज से मिरी आँख लड़ी थी Share on: