फ़ज़ा-ए-शहर बड़ी ख़ुश-गवार थी लेकिन By Sher << डूबे हुए तारों पे मैं क्य... इक साल गया इक साल नया है ... >> फ़ज़ा-ए-शहर बड़ी ख़ुश-गवार थी लेकिन पलक झपकते ही कैसा अजीब मंज़र था Share on: