इक बोसा माँगता हूँ मैं ख़ैरात-ए-हुस्न की By Sher << एक तो मर्ज़ी न थी जाने को... इक बाज़ी-ए-इश्क़ से हैं आ... >> इक बोसा माँगता हूँ मैं ख़ैरात-ए-हुस्न की दो माल की ज़कात कि दौलत ज़ियादा हो Share on: