एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं By सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी, Sher << देखने वाले मुझे मेरी नज़र... ब'अद मुद्दत गर्दिश-ए-... >> एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं देखते हैं ये अज़िय्यत भी गवारा कर के Share on: