ब'अद मुद्दत गर्दिश-ए-तस्बीह से 'मिस्कीं' हमें By Sher << एक ही शहर में रहना है मगर... नश्शा था ज़िंदगी का शराबो... >> ब'अद मुद्दत गर्दिश-ए-तस्बीह से 'मिस्कीं' हमें दाना-ए-तस्बीह में ज़ुन्नार आता है नज़र Share on: