एक मुद्दत से ख़यालों में बसा है जो शख़्स By Sher << इक वही खोल सका सातवाँ दर ... धूप मेरी सारी रंगीनी उड़ा... >> एक मुद्दत से ख़यालों में बसा है जो शख़्स ग़ौर करते हैं तो उस का कोई चेहरा भी नहीं Share on: