एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है By Sher << हर नई नस्ल को इक ताज़ा मद... मिरी वहशत पे बहस-आराइयाँ ... >> एक मुश्त-ए-ख़ाक और वो भी हवा की ज़द में है ज़िंदगी की बेबसी का इस्तिआरा देखना Share on: