इक पल का क़ुर्ब एक बरस का फिर इंतिज़ार By Sher << ख़ुदा आबाद रक्खे ज़िंदगी ... फिर चाँदनी लगे तिरी परछाई... >> इक पल का क़ुर्ब एक बरस का फिर इंतिज़ार आई है जनवरी तो दिसम्बर चला गया Share on: