एक पत्थर पूजने को शैख़ जी काबे गए By Sher << वा होते हैं मस्ती में ख़र... उस को चाहा था कभी ख़ुद की... >> एक पत्थर पूजने को शैख़ जी काबे गए 'ज़ौक़' हर बुत क़ाबिल-ए-बोसा है इस बुत-ख़ाने में Share on: