एक शीशे के मुक़ाबिल थे हज़ारों पत्थर By Sher << ग़म-गुसारी प्यार हमदर्दी ... दूर हम कर न सके कोर-निगाह... >> एक शीशे के मुक़ाबिल थे हज़ारों पत्थर टूट कर मेरे बिखरने की कहानी है यही Share on: