फ़ज़ा में तैरते रहते हैं नक़्श से क्या क्या By Sher << हर लहज़ा उस के पाँव की आह... कभी जम्हूरियत यहाँ आए >> फ़ज़ा में तैरते रहते हैं नक़्श से क्या क्या मुझे तलाश न करती हों ये बलाएँ कहीं Share on: