फ़लक से घूरती हैं मुझ को बे-शुमार आँखें By Sher << नेमत-ए-अल्वान भी ख़्वान-ए... ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा ल... >> फ़लक से घूरती हैं मुझ को बे-शुमार आँखें न चैन आता है जी को न रात ढलती है Share on: