फ़लसफ़े सारे किताबों में उलझ कर रह गए By Sher << काश लौटें मिरे पापा भी खि... दिल पे इक ग़म की घटा छाई ... >> फ़लसफ़े सारे किताबों में उलझ कर रह गए दर्स-गाहों में निसाबों की थकन बाक़ी रही Share on: