कितनी फ़राख़-दिल हूँ मैं 'फ़रह'-जी प्यार में By Sher << किसी और को मैं तिरे सिवा ... गुम हुआ जाता है कोई मंज़ि... >> कितनी फ़राख़-दिल हूँ मैं 'फ़रह'-जी प्यार में हैरत है उस की चाह में कितनी निडर हुई Share on: