गुम हुआ जाता है कोई मंज़िलों की गर्द में By Sher << कितनी फ़राख़-दिल हूँ मैं ... इश्क़ तो अपने लहू में ही ... >> गुम हुआ जाता है कोई मंज़िलों की गर्द में ज़िंदगी भर की मसाफ़त राएगाँ होने को है Share on: