फ़र्बा-तनी की फ़िक्र में नादाँ हैं रोज़-ओ-शब By Sher << गर कहीं पाऊँ अकेला तो बला... एक तो मर्ज़ी न थी जाने को... >> फ़र्बा-तनी की फ़िक्र में नादाँ हैं रोज़-ओ-शब आख़िर को जानते नहीं है ये ग़िज़ा-ए-मर्ग Share on: