फ़रिश्ते देख रहे हैं ज़मीन ओ चर्ख़ का रब्त By Sher << अपने सिवा नहीं है कोई अपन... उन्हें आँखों ने बेदर्दी स... >> फ़रिश्ते देख रहे हैं ज़मीन ओ चर्ख़ का रब्त ये फ़ासला भी तो इंसाँ की एक जस्त लगे Share on: