धूप छूती है बदन को जब 'शमीम' By Sher << हैं राख राख मगर आज तक नही... अपने ही फ़न की आग में जलत... >> धूप छूती है बदन को जब 'शमीम' बर्फ़ के सूरज पिघल जाते हैं क्यूँ Share on: