फ़साना-दर-फ़साना फिर रही है ज़िंदगी जब से By Sher << गए मौसम में मैं ने क्यूँ ... इक वही खोल सका सातवाँ दर ... >> फ़साना-दर-फ़साना फिर रही है ज़िंदगी जब से किसी ने लिख दिया है ताक़-ए-निस्याँ पर पता अपना Share on: