फ़िक्र-ए-जमील ख़्वाब-ए-परेशाँ है आज-कल By Sher << तुम्हें तो क़ब्र की मिट्ट... मैं चाहता हूँ यहीं सारे फ... >> फ़िक्र-ए-जमील ख़्वाब-ए-परेशाँ है आज-कल शायर नहीं है वो जो ग़ज़ल-ख़्वाँ है आज-कल Share on: