फिर ज़मीं खींच रही है मुझे अपनी जानिब By Sher << देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब ... जिन से अँधेरी रातों में ज... >> फिर ज़मीं खींच रही है मुझे अपनी जानिब मैं रुकूँ कैसे के पर्वाज़ अभी बाक़ी है Share on: