गहरे सुर्ख़ गुलाब का अंधा बुलबुल साँप को क्या देखेगा By Sher << ग़म-ए-हयात ओ ग़म-ए-दोस्त ... एक तरफ़ रू-ए-जानाँ था जलत... >> गहरे सुर्ख़ गुलाब का अंधा बुलबुल साँप को क्या देखेगा पास ही उगती नाग-फनी थी सारे फूल वहीं मिलते हैं Share on: