ग़ज़ल में बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ ही नहीं सब कुछ By Sher << किस क़दर था गर्म नाला बुल... घटती है शब-ए-वस्ल तो कहता... >> ग़ज़ल में बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ ही नहीं सब कुछ जिगर का ख़ून भी कुछ चाहिए असर के लिए Share on: