गले मिला न कभी चाँद बख़्त ऐसा था By Sher << हम-सफ़र रह गए बहुत पीछे फ़सील-ए-जिस्म पे ताज़ा लह... >> गले मिला न कभी चाँद बख़्त ऐसा था हरा-भरा बदन अपना दरख़्त ऐसा था Share on: