फ़सील-ए-जिस्म पे ताज़ा लहू के छींटे हैं By Sher << गले मिला न कभी चाँद बख़्त... दर्द के मौसम का क्या होगा... >> फ़सील-ए-जिस्म पे ताज़ा लहू के छींटे हैं हुदूद-ए-वक़्त से आगे निकल गया है कोई Share on: