ग़म-ए-हबीब नहीं कुछ ग़म-ए-जहाँ से अलग By Sher << हमें तन्हाइयों में यूँ तो... बे-रब्ती-ए-हयात का मंज़र ... >> ग़म-ए-हबीब नहीं कुछ ग़म-ए-जहाँ से अलग ये अहल-ए-दर्द ने क्या मसअले उठाए हैं Share on: