गर्द-ए-शोहरत को भी दामन से लिपटने न दिया By ख़ुद्दारी, Sher << ग़म से बिखरा न पाएमाल हुआ एक दरिया पार कर के आ गया ... >> गर्द-ए-शोहरत को भी दामन से लिपटने न दिया कोई एहसान ज़माने का उठाया ही नहीं Share on: