ग़र्क़ करता है न देता है किनारा ही मुझे By Sher << कौन सुनता है यहाँ पस्त-सद... कहीं ऐसा न हो मर जाऊँ मैं... >> ग़र्क़ करता है न देता है किनारा ही मुझे उस ने मेरी ज़ात में कैसा समुंदर रख दिया Share on: