कहाँ वो ज़ब्त के दावे कहाँ ये हम 'गौहर' By Sher << 'बाक़ी' जो चुप रह... नफ़रत से मोहब्बत को सहारे... >> कहाँ वो ज़ब्त के दावे कहाँ ये हम 'गौहर' कि टूटते थे न फिर टूट कर बिखरते थे Share on: