ग़ुंचा चटका था कहीं ख़ातिर-ए-बुलबुल के लिए By Sher << इतना मरदूद हूँ कि डर है म... फ़क़त रंग ही उन का काला न... >> ग़ुंचा चटका था कहीं ख़ातिर-ए-बुलबुल के लिए मैं ने ये जाना कि कुछ मुझ से कहा हो जैसे Share on: