घर से किस तरह मैं निकलूँ कि ये मद्धम सा चराग़ By Sher << ग़ज़ल का शेर तो होता है ब... चौराहों का तो हुस्न बढ़ा ... >> घर से किस तरह मैं निकलूँ कि ये मद्धम सा चराग़ मैं नहीं हूँगा तो तन्हाई में बुझ जाएगा Share on: