गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे By Sher << ख़ुदा और नाख़ुदा मिल कर ड... रोता हूँ तो सैलाब से कटती... >> गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे वो खुला-पन है कि दीवार हुआ जाता है Share on: