गुल खिलाए न कहीं फ़ित्ना-ए-दौराँ कुछ और By Sher << गुलों का ज़िक्र बहारों मे... ग़म-ए-दिल का असर हर बज़्म... >> गुल खिलाए न कहीं फ़ित्ना-ए-दौराँ कुछ और आज-कल दौर-ए-मय-ओ-जाम से जी डरता है Share on: