है इंतिज़ार मुझे जंग ख़त्म होने का By Sher << तुम जो आए हो तो शक्ल-ए-दर... कहूँगा दावर-ए-महशर कर दिय... >> है इंतिज़ार मुझे जंग ख़त्म होने का लहू की क़ैद से बाहर कोई बुलाता है Share on: